कागज 2021

कागज़

Premier was on Zee5 and in cinema now…………..

ट्रेलर लिंक  https://www.youtube.com/watch?v=6DqSLijSY9I   

क्रिटिक रेटिंग

3.5/5

पाठकों की रेटिंग

3/5

 

कागज की  कास्ट

1.        1.    पंकज त्रिपाठी – भरत लाल




 







        2.       एम मनोल गज्जर - रुक्मणि



3.           









         



          3. सतीश कौशिक – साधुराम केवट वकील










     4 .     मीता वशिष्ठ - MLA असर्फ़ी देवी




           

       







        5.       अमर उपाध्याय - MLA विधायक जगन पाल सिंह  




        







       6.       नेहा चौहान - जौर्नलिस्ट सोनिया 












       7.       संदीपा धर - डांसर " लालम लाल गाना"












      8.       ब्रिजेंद्र काला - हाई कोर्ट जज



  
















कुली नम्बर 1 क्रू                                                                            

डायरेक्टर - सतीश कौशिक  
प्रोडूसर  -  सलमान खान , निशांत कौशिक , विकास मलू .
राइटर - सतीश कौशिक 
संगीत - प्रवेश मालिक, राहुल जैन , ceazer 
प्रोडक्शन कंपनी - सलमान खान फिल्म्स , दी सतीश कौशिक एंटरटेनमेंट प्रोडक्शन 
वितरण - Zee5
रिलीज़ डेट - 07 जनवरी 2021 

श्रेणी - हिन्दी , जीवनी , ड्रामा 

अवधि1 Hrs 56 Min

कब स्ट्रीम हुई


यह फिल्म 7 जनवरी को वीडियो स्ट्रीमिंग पोर्टल zee5 पर रिलीज हुई है। फिल्म साल 2020 मैं मई में रिलीज होनी थी लेकिन कोविड के चलते सिनेमाघर बंद हो गए और उसके साथी सभी तरह की शूटिंग भी रोक दी गई पर अभी से ऑनलाइन रिलीज किया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश के फैंस के लिए गुड न्यूज़ है कि वे इस फिल्म को सिनेमाघरों में जाकर देख सकते हैं ।

वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस मैं पंकज त्रिपाठी ने कहा कि फिल्म के लिए उन्होंने खुद को लाल की दुनिया मैं उतार लिया था और उन्हें बहुत जल्द यह बात समझ में आ गई कि वह कितनी अजीब स्थिति में फस गए थे। उन्होंने कहा, " जिस पल उन्होंने मुझे यह कहानी सुनाई, मैं तभी इसके लिए तैयार हो गया था । मैंने कहा कि मेरे पास डेट्स है और मैं इस फिल्म के लिए तैयार हूं, बस यह बता दीजिए की मुझे कब आना है।"

पंकज ने कहा," एक कलाकार के तौर पर आप ऐसे स्क्रिप्ट की तलाश में होते हैं जो आपको यह महसूस करा सके की आप यह कहानी रिजर्व करते हैं ।" इससे पहले उनका विचार बदले मैंने  फिल्म 'कागज' साइन कर ली ।

 

 संक्षेप मे कहानी

देखा जाए तो हम किसी भी सरकारी काम के लिए जाएं तो हमें कागज की जरूरत पड़ी ही  जाती है ।

इन कागजों के बिना आपका कोई भी सरकारी  काम नहीं होता है अगर किसी कागज पर सरकारी 

मुहर लग जाए तो उसकी कीमत सोना चांदी के बराबर हो जाती है लेकिन अगर इन्ही  कागजों में 

आपको मृतक घोषित किया जाए तो आप जीते जी कोई भी कार्य नहीं कर सकते है । एक सरकारी 

कागज की जरुरत को बताने वाली सच्ची घटना पर आधारित है यह फिल्म 'कागज' । फिल्म लाल 

बिहारी मृतक नाम के व्यक्ति के जीवन पर आधारित है जिसका किरदार पंकज त्रिपाठी निभा रहे हैं 

लाल बिहारी जी ने 18 साल के लंबे संघर्ष के बाद खुद को जीवित किया था ।



कहानी 

 यूपी के खलीलाबाद के एक छोटे से गांव का रहने वाला भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) एक बैंड मास्टर है जो अपनी पत्नी रुक्मणि (एम मोनल गज्जर) और बच्चों के साथ सुख से रह रहा है। भरत लाल की पत्नी रुक्मणि उससे अपना काम और बढ़ाने के लिए बैंक से लोन लेने की सलाह देती है। जब भरत लाल बैंक जाता है तो लोन के बदले उससे गिरवी रखने के लिए जमीन के कागज मांगे जाते हैं। भरत लाल अपनी जमीन के कागज लेने जाता है तो यह जानकर हैरान रह जाता है कि कागजों के मुताबिक वह मर चुका है और उसकी जमीन उसके चाचा के बेटों को बांट दी गई है। इसके बाद शुरू होता है भरत लाल का लंबा संघर्ष जिसमें वह लेखपाल से लेकर प्रधानमंत्री और कोर्ट के चक्कर काटता रहता है। भरत लाल की मदद के  वकील साधुराम केवट  (सतीश कौशिक) आगे आते है  जो अंत तक उनकी मदद करते हैं। बहुत प्रयत्न करने के बाद कुछ नहीं होता है तोह  भरत लाल अपने नाम के आगे मृतक लगा लेता है और उसके साथ पूरे प्रदेश के ऐसे लोग जुड़ जाते हैं जिन्हें कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था ।  मामला जायदा  लम्बा बढने के कारण  भरत लाल का काम-धंधा बंद हो जाता है और पैसों की जरुरत बढने के कारण वह  परिवार साथ छोड़ देता है लेकिन भरत लाल हार नहीं मानता है।
आखिर मे वह अपनी अर्थी उठवाता  और तहसीलदार के दफ्तर पहुच जाता है और वहा पर हमला कर देता है और मुसीबत मे फस जाता है दूसरी तरफ वकील साधुराम केवट और मीडिया कर्मी  सोनिया की मेहनत  रंग लती है  और वह प्रधान मंत्री  से  भरत लाला का जीवन प्रमाण ले कर आ जताई है  और इस तरह 18 साल के लंबे संघर्ष के बाद भरत लाल कैसे खुद  को  कागजों में  जीवित करता है, इसी संघर्ष की कहानी है 'कागज'।


देशभर के गांव-देहातों में आज भी भरत लाल जैसे जिंदा मरे हुए लोग घूम रहे हैं। लोग पूरी जिंदगी अदालतों के चक्कर काटते हैं लेकिन कभी खुद को जीवित साबित नहीं कर पाते और कागजों में मरने के बाद वास्तव में मर जाते हैं। डायरेक्टर सतीश कौशिक फिल्म को बिल्कुल हल्के-फुल्के अंदाज में शुरू करते हैं लेकिन वक्त के साथ यह फिल्म बेहद सीरियस होती जाती है। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है तो आप भरत लाल की पीड़ा और जिद को गहराई से समझने लगते हैं। फिल्म संघर्ष के जज्बे का पॉजिटिव संदेश भी देती है। हालांकि फिल्म कभी-कभी बहुत धीमी लगने लगती है लेकिन भरत लाल के नए-नए हथकंडे एक बार फिर कहानी में आपका इंट्रेस्ट जगा देते हैं। फिल्म को शायद थोड़ा छोटा किया जा सकता था।फिल्म में गांव का सरपंच एक डायलॉग बोलता है, 'इस देश में राज्यपाल से भी बड़ा लेखपाल होता है और उसके लिखे को कोई नहीं मिटा सकता।' यह आज भी हमारी व्यवस्था की सच्चाई है। 


ऐक्टिंग-
जिस फिल्म के साथ पंकज त्रिपाठी का नाम जुड़ जाए तो एक्टिंग की बात करना फिजूल लगता है. वे कभी भी एक्टिंग नहीं करते हैं. वे तो उस किरदार को ऊपर से लेकर नीचे तक, सिर्फ जीते हैं. कागज में पंकज की वो प्रथा जारी है. भरत लाल बन पंकज ने गदर मचा दिया है. इस किरदार में सिर्फ 'तड़प' और 'दुविधा' को दिखाने की जरूरत है और वो काम पंकज त्रिपाठी करने में सफल कहे जाएंगे. भरत लाल की पत्नी के रोल में मोनल गज्जर का काम भी शानदार रहा है. उन्होंने पंकज संग अपनी केमिस्ट्री बेहतरीन अंदाज में जमाई है. 


क्यों देखें
फिल्म में सलमान खान और सतीश कौशिक का नेरेसन भी सुनने को मिलता हे. सलमान की सुनाई कविता तो जरूर बढ़िया लगेगी लेकिन सतीष का नरेशन थोड़ा 'कम्यूनिटी रेडियो' के किसी शो जैसा लगता है. कई बार बिना कुछ कहे भी बात समझ आ जाती है, ऐसे में कागज में इतना सारा नरेशन समय बर्बाद वाला लगता है. कागज में तमाम गाने भी सिर्फ इसलिए डाल दिए गए हैं कि साबित हो जाए कि बॉलीवुड फिल्म बनाई है. लेकिन उन्हें सुन सिर्फ मजा किरकिरा होगा. एक इंट्रेस्टिंग कहानी और पकंज त्रिपाठी की एक्टिंग के लिए इस कागज को एक बार जरूर देखा जा सकता है. 



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